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________________ -- इस स्तोत्रकी पठन पाठनमें उपेक्षाका परिणाम है ऐसा स्पष्ट परिलक्षित होता है । तथा इस स्तोत्रकी कीर्तिकलाव्याख्या के अवलोकन के बाद यह प्रगट हीं ज्ञात होता है कि - शब्दकी दृष्टि से सरल लगतेहुए भी यह स्तोत्र अर्थसे अत्यन्त सारगर्भित है । इसलिये कीर्तिकलाव्याख्यासे इसस्तोत्रका महत्त्व प्रकाशमें आया है ऐसा कहना कोई अत्युक्ति नहीं । मैं अपनी योग्यताकी मर्यादाओं से परवश हूं । फिरभी इतनातो अवश्य हीं समझता हूं तथा कह सकता हूं कि कीर्तिकलाव्याख्या सरल, सारगर्भित, उपयोगी एवं प्रशंसनीय है - इतना हीं नहीं, किन्तु इससे चिरकालसे अपेक्षित तथा एक अत्यन्त आवश्यक व्याख्याकी पूर्ति हुई है । - कीर्तिकलासहित अन्य प्रकाशनों के जैसे हीं इस प्रस्तुत प्रकाशन में भी श्लोकों के हिन्दीमें भावार्थप्रदिये गये हैं । तथा स्पष्ट रूपसे प्रत्येक पदार्थका पृथक् ज्ञान हो, और इस प्रकार वाचकों के संस्कृत शब्दों के अर्थज्ञानमेंभी उपयोगी हो इस दृष्टिसे प्रत्येक पदोंका अर्थ तथा समासवाले पदों का पृथक्से सङ्कलित अर्थभी दिये गये हैं, जिससे विद्यार्थियों एवं शब्दार्थ के जिज्ञासुओं के लिये इस प्रकाशनकी उपयोगिता में वृद्धि हुई है। जिससे बिना किसीके सहायता के हीं श्लोकोंका अर्थ समझा तथा समझाया जा सकता है । यह बात पुस्तक. देखने के बाद स्वयं ही प्रगट हो जाती है । इस पुस्तककी इन सब विशेषताओं को देखते हुए इसके प्रकाशनका दुर्लभ सुअवसर प्राप्त होनेसे मेरे लिये कृतकृत्यताका तथा
SR No.002450
Book TitleStotratrayi Saklarhat Stotra Virjin Stotra Mahadeo Stotra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorKirtichandravijay, Prabodhchandravijay
PublisherBhailalbhai Ambalal Petladwala
Publication Year
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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