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कीर्तिकलाहिन्दीभाषाऽनुवादसहितम् हुए, ब्रह्मा द्वार हुए, तथा विष्णु कार्य हुए । (जैसे दण्ड निमित्त है, चक्रका घूमना द्वार है, घट कार्य है । यहाँ ब्रह्मा बीचमें रहनेसे चक्रके घूमनेके जैसे द्वार माने गये हैं—यह ध्यान देने योग्य है।) इस प्रकार ये तीनों कार्यकारणभावको प्राप्त हैं। तो एक मूर्ति कैसे हो सकते हैं ? । (एक ही व्यक्तिमें कार्यकारणभाव नहीं होता, किन्तु भिन्न व्यक्तियों में होता है, जैसे दण्ड तथा घटमें ! दण्ड तथा घट एक मूर्ति है-ऐसा तो बालकभी नहीं कह सकता। इसलिये तीनोंकी एकमूर्ति नहीं हो सकती। किन्तु जिनेश्वरके ही उक्त प्रकारसे एक मूर्त्तिके तीन भाग हैं - ऐसा अभिप्राय है) ॥ २२ ॥
प्रजापतिसुतो ब्रह्मा माता पद्मावती स्मृता । अभिजिजन्मनक्षत्रमेकमूर्तिः कथं भवेत् ॥ २३ ॥
पदार्थ-ब्रह्मा=ब्रह्मानामके देव, प्रजापतिसुतः-प्रजापति द्विजके पुत्र हैं। तथा, माता=ब्रह्माकी माता, पद्मावती पद्मावती नामकी, स्मृता कही गयी हैं। एवं, जन्मनक्षत्रम् ब्रह्माके जन्म समयका नक्षत्र, अभिजित् अभिजित् नामका है। तो, एकमुर्तिः =एकमूर्ति, कथम् कैसे, भवेत् हो सकती है। अर्थात् नहीं हो सकती ॥ २३ ॥ - भावार्थ --- ( एक मूर्तिके ही भिन्न भिन्न अवस्थाओं के सूचक
ये नाम हैं- ऐसा नहीं कहा जा सकता। क्योंकि इन तीनोंके माता पिता आदि भिन्न भिन्ननामके हैं। जैसे-) ब्रह्मा नामके देव प्रजापति नामक द्विजके पुत्र हैं, उनकी माताका नाम पद्मावती है। . तथा