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कीर्तिकलाहिन्दीभाषाऽनुवादसहितम्
२१ इन नामोंके, त्रयः-तीन, भागाः भाग - अंश-पर्याय हैं। च तथा, ते वे तीनों भाग, एव- ही, ज्ञानचारित्रदर्शनात् = ज्ञान, चारित्र तथा दर्शन शब्दोंसे क्रमशः, पुन=फिरसे - शब्दान्तरसे, उक्ताः= कहे गये हैं ॥ २०॥
भावार्थ-जिनेश्वर रूपी एक मूर्ति हैं, तथा उसके ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश्वर - इन नामोंके तीन पर्याय हैं । वह तीनों पर्याय ही ज्ञान, चारित्र तथा दर्शन शब्दों से कहे जाते है । अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश्वर एवं ज्ञान, चारित्र तथा दर्शन ये शब्द क्रमशः पर्याय शब्द हैं। इस प्रकार अन्यदर्शनमें बताये गये (एक मूर्ति तीन भाग) जिनेश्वर हीं है। दूसरे देवके विषयमें 'एक मूर्ति तीन भाग' यह उक्ति असंगत है, जिसका प्रतिपादन आगे किया जायगा—यह जानना चाहिये । ॥ २० ॥
एकमूर्तिस्त्रयो भागा ब्रह्मविष्णुमहेश्वराः। . परस्परं विभिन्नानामेकमूर्तिः कथं भवेत् १ ॥ २१ ॥
पदार्थ-एकमूर्तिः एक मूर्ति, और, ब्रह्मविष्णुमहेश्वराः= ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश्वर - ये, त्रयः तीन, भागाः भाग - अंश हैं । किन्तु, परस्परम् परस्पर, एक दूसरेसे, विभिन्नानाम् विभिन्न - पृथक् स्वरूप - शरीरवालोंकी, एकमूर्तिः एक शरीर, कथम् कैसे, भवेत् ? = हो सकती है? अर्थात् परस्पर भिन्न शरीरवालोंकी तीन मूर्तियां होंगी, एक नहीं ॥ २१ ॥