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कीर्तिकलाहिन्दीभाषाऽनुवादसहितम्
प्रशान्तदर्शन आदि गुणोंसे विराजित - प्रस्तुत, शिवः शिव : जिनेश्वर, त्रिविधः तीन प्रकारके हैं ॥ १८ ॥ - भावार्थ- प्रशान्त दर्शन आदि गुणोंसे युक्त शिव जिनेश्वरहीं अन्तरात्मा, बाह्यात्मा तथा परमात्मा-इन त्रिविध रूपोंसे युक्त हैं । जैसे--सिद्धि प्राप्त होनेपर, अर्थात् मुक्त अवस्थामें अनन्त-दर्शन, ज्ञान, चारित्र तथा वीर्य आदि सिद्ध होनेसे वह परमात्मा कहे जाते हैं। क्योंकि सिद्ध आत्मासे अधिक उत्कृष्ट गुण अन्य आत्मामें नहीं होते। इसलिये वह परम-सर्व श्रेष्ठ आत्मा हैं। तथा सिद्धिकी प्राप्तिसे पूर्व जब भवावस्थामें जन्म ग्रहण केलिये पूर्व · भव छोड़कर जिनेश्वरकी आत्मा परभव ग्रहण करने के लिये विग्रहगति में रहती है, तब वह बाह्यात्मा हैं। क्योंकि उस अवस्थामें वह आत्मा कर्मिण शरीरके सिवाय अन्य सभी शरीरोंसे बाहर रहता है। इसलिये बाह्या - बाहर रहनेवाली आत्मा - बाह्यात्मा हैं । एवं जन्म ग्रहणके बाद शरीरस्थ रहने के कारण अन्तर - शरीरमें रहनेवाली आत्मा - अन्तरात्मा हैं। इस प्रकार जिनेश्वर त्रिविध आत्मस्वरूप है। (अन्य तीर्थिकों के शिवमें इस प्रकारसे तीनों अथ घटित नहीं होनेके कारण वह नामधारी ही है-ऐसा भाव है) ॥ १८ ॥ . सकलो दोपसम्पूर्णो निष्कलो दोषवर्जितः ।। . पञ्चदेहविनिर्मुक्तः सम्प्राप्तः परमं पदम् ॥ १९ ॥ ... पदार्थ:---दोषसम्पूर्ण: दोष - कर्म,, जन्म- राग द्वेष आदिले सम्पूर्ण - सहित् होनेपरः सकलः = कला : भविस्थामें होनेवाले