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प्रकाशकीयः
प, पूज्य पन्यासप्रवर श्रीकीर्तिचन्द्रविजयगणिवर महाराजसे रचित कीर्तिकलानामक संस्कृत तथा हिन्दीव्याख्यासहित-कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्यनिर्मित-स्तोत्रों में, द्वात्रिंशिकाद्वयी (अयोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका तथा अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका) तथा वीतरागस्तवके चार. पुस्तकों में प्रकाशन हो चुके हैं। जिसका जैन समाज तथा अन्यत्रभी अच्छा स्वागत तथा आदर किया गया है। एवं विद्वानोंने उनकी मुक्तकंठसे प्रशंसाकी है।
प्रस्तुत स्तोत्रत्रयी नामके दो ग्रन्थों के प्रकाशनमें उक्त पन्यास महाराजके द्वारा निर्मित कीर्तिकलानामकी - संस्कृतव्याख्या तथा हिन्दीभाषानुवादसहित उक्त आचार्यमहाराजके तीन - सकलार्हत्स्तोत्र, वीरजिनस्तोत्र, महादेवस्तोत्र-स्तोत्रोंका समावेश किया गया है। जैसे- उक्त तीनों स्तोत्रोंका संस्कृत तथा हिन्दीव्याख्यासहित एक पुस्तक तथा केवल हिन्दीव्याख्यासहित दूसरी पुस्तक ।
___ सकलार्हत्स्तोत्र उक्त आचार्यमहाराजविरचित प्रसिद्ध महान् प्रबन्ध त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरितका मंगलाचारण है। इसका जैन समाजमें क्या स्थान है, इस विषयमें कुछ कहना, इस स्तोत्रकी प्रसिद्धि एवं आदर तथा प्रतिक्रमणक्रियामें अनिवार्यरूपसे पाठात्मक समावेशको देखते हुए एक धृष्टता जैसे ही होगी। इस स्तोत्रके