________________
महादेवस्तोत्रम् नृत्य आदि मत्तजनोंके योग्य क्रियाओंसे युक्त होनेके कारण अत्यन्त मत्त,पूजानैवेद्य आदिका लोभ होनेके कारण महान् लोभी, अत एव उत्तम गुणोंसे रहित होनेके कारण महादेव नहीं हैं, इसलिये वन्दनीय भी नहीं हैं - ऐसा अभिप्राय हैं ) ॥ ८ ॥
महारागो महाद्वेषो महामोहस्तथैव च । कषायश्च हतो येन महादेवः स उच्यते ॥९॥
पदार्थ-येन=जिस देवने, महाराग: महान् - जिसका त्याग अशक्य है ऐसा, अत्युत्कट, राग - विषयासक्ति, तथैव च और, महाद्वेषः महान्-अत्युत्कट द्वेष - अनिष्ट विषयोंमें अप्रीति, एवं, महामोह: महान् मोह • ममत्व, च-तथा, कषायः कषाय - क्रोध, मान, माया, लोभ - इन सभीका, हत: नाश किये हैं, - त्याग किये हैं, सः=ऐसे वह (जिनेश्वर) देव ही, महादेवः महादेव, उच्यते =कहे जाते हैं ॥ ९ ॥
भावार्थ- (असाधारण एवं अलौकिक अतिशय, शक्ति, ज्ञान आदिसे युक्त) जिस देवने (अनादि कालसे रहनेके कारण) महान्अत्यन्त दृढ एवं दुर्जय ऐसे राग, द्वेष, तथा महान्-विवेकको भ्रष्ट करनेवाले मोह, एवं महान् क्रोध, मान, माया तथा लोभरूप कषायइन सभीके त्याग कर दिये हैं। वह देव ही महादेव कहे जाते हैं। (इन सभी गुणोंसे युक्त जिनेश्वर हीं हैं, इसलिये वही महादेव हैं, अन्य तीर्थिकके इष्ट महादेवके यह सब गुण नहीं हैं, अतः वे नामधारी महादेव ही हैं-यह आशय है) ॥९॥