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कीर्तिकलाहिन्दीभाषाऽनुवादसहितम् . १३ दुःखोंसे पीड़ित प्राणियों के लिये । अगदङ्कारदर्शनः अगदकार वैद्य, दर्शन - देखाव, देखना, अथवा स्याद्वादरूपी सिद्धान्त, वैद्यसमान, दर्शनवाले । अर्थात् जिनके दर्शनसे भवपीडा नष्टहो, तथा जिनके सिद्धान्तमें भवरोगनाशक उपाय बताये गये हैं - ऐसे। तथा, निःश्रेयसश्रीरमण:=निःश्रेयस - मोक्ष, श्री-लक्ष्मी, समृद्धि, रमणउपभोगकरनेवाले. मोक्षकी लक्ष्मीका उपभोगकरनेवाले - सच्चिदानन्दमय - सिद्धस्वरूप, श्रेयांस: जिनेश्वर श्रीश्रेयांसस्वामी, व आप भव्योंके, श्रेयसे-कल्याणके लिये, अस्तु-हों, कल्याणप्रद हों ॥ १३ ॥
भावार्थ- (जैसे वैद्य रोग एवं उसकी पीडाको दवा आदिके प्रयोगसे दूरकरता है, वैसे ही जिनेश्वर मुक्तहोनेके कारण अपने दर्शनसे तथा स्याद्वादके उपदेशसे भवरोग दूरकरते हैं। इसलिये) भव - जन्मके कारण होनेवाले कायिक, वाचिक, मानसिक-इन त्रिविधतापों - अथवा जन्म, जरा, मरणरूपी रोगों - से पीडित जनता के लिये जिनका दर्शन वैद्य समान है, अर्थात् जिनके दर्शनमात्रसे सांसारिक. त्रिविधताप दूरहो जाते हैं, अथवा भवके उच्छेदका उपाय बतानेके कारण जिनका दर्शन - स्याद्वादनामक सिद्धान्त भवसम्बन्धी या भवरूपी - रोगसे पीड़ित, जनताके लिये वैद्य समान है। अर्थात् जिनके देखनेसे तथा उपदेशसे भवदुःखकी निवृत्ति होती है। तथा जो मुक्तिके अनंत, अखंड तथा शाश्वतसुखके उपभोगकरनेवाले - मुक्त - सिद्धात्मा हैं। ऐसे जिनेश्वर श्रीश्रेयांसनाथ आप भव्योंके कल्याणकारक हों। अर्थात् लोग भक्तिपूर्वक श्रीश्रेयांसनाथके दर्शन