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________________ सकलाऽर्हत्स्तोत्रम् रहित - सर्वस्वके त्याग करनेवाले, त्यागियोंमें सर्वप्रथम, चतथा, आदिमम् सर्वप्रथम, तीर्थनाथम् तीर्थङ्कर, तीर्थक्करों में सर्वप्रथम, ऐसे, ऋषभस्वामिनम् श्रीऋषभनाथकी, स्तुम:=मैं स्तुति करता भावार्थ-जो राजाओं, त्यागियों तथा तीर्थङ्करोंमें सर्वप्रथम हैं, मैं ऐसे श्रीऋषभनाथकी स्तुति करता हूं। (युगादिमें इन्द्रादि देवोंने लोककी व्यवस्थाके लिये श्रीऋषभनाथका राज्याभिषेक किया था। इसलिये पृथिवीमें वे ही सर्वप्रथम राजा हुए थे। तथा लोकव्यवहारका प्रवर्तन किया था। एवं जन्मसे ही तीनों ज्ञानोंसे युक्त होनेके कारण तथा लोकान्तिक देवोंकी प्रार्थनासे तीर्थप्रवर्तनके लिये सर्वखका त्यागकर मोक्षप्राप्तिकी भावनासे श्रीऋषभनाथने ही सर्वप्रथम दीक्षा लीथी, तथा चतुर्विध धर्मका उपदेश देकर चतुर्विधसंघ - तीर्थ का स्थापन किया था। इसलिये सर्वप्रथम तीर्थङ्कर श्रीऋषभनाथ ही हैं-यह ध्यान देने योग्य है) ॥ ३ ॥ अर्हन्तमजितं विश्वकमलाकरभास्करम् । अम्लानकेवलाऽऽदर्शसङ्क्रान्तजगतं स्तुवे ॥ ४ ॥ पदार्थ-विश्वकमलाकरभास्करम् विश्व - जगतरूपी, कमलाकर - कमलोंके आकर-खान-समूह, भास्कर - सूर्य , विश्वरूपी कमलसमूहों के लिये सूर्यसमान, अम्लानकेवलाऽऽदर्शसक्रान्तजगतम्-अम्लान-म्लान-मलिन नहीं - ऐसा, अति स्वच्छ, विशुद्ध, केवल - केवलज्ञान, आदर्श - दर्पण, सङ्कान्त • प्रतिबिम्बित, गोचर,
SR No.002450
Book TitleStotratrayi Saklarhat Stotra Virjin Stotra Mahadeo Stotra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorKirtichandravijay, Prabodhchandravijay
PublisherBhailalbhai Ambalal Petladwala
Publication Year
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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