________________
( १५६ ) जैन जाति महोदय प्रकरण कट्ठा. (१६) जैन मन्दिर और नई प्रतिष्टाएं
जैन मंदिर सास्वता और प्रसास्वता अनादिकाल के हैं और उन मंदिरों की सेवा पूजा भक्ती कर अनादिकानसे भव्यात्मा अपना कल्याण करते आए हैं जितनी संख्या में सेवा पूजा करनेवाले होते हैं उतनी ही संख्या में मन्दिर बनाए जाते हैं एक समय वह था कि कौड़ों की संख्या में जैन समाज और उनपर लक्ष्मीदेवी की पूर्ण कृपा, तथा दृढ श्रद्धा से सेवा पूजा उपासना और सार संभाल करनेवाले थे। उस समय हजारों नहीं पर लाखों की संख्या में जैन मन्दिर होना स्वाभाविक बात है पर आज काल की कुटिल गतिसे जैन समाज के पास न तो वह विद्याबल है, न वह संख्याबल है न वह लक्ष्मीबल है और न वह श्रद्धाबल रहा है तथापि जैन संख्या के प्रमाणमें जैन मन्दिर कम नहीं है यहां तक कि उन मंदिरों की रक्षा करना आज बड़ा ही मुश्किल हो रहा है।
देश यात्रा करनेवालों के ख्याल से यह बात बाहर न होगा कि बड़े ३ आलिसान कितनेक जैन मन्दिरों में शिवलिङ्ग व अन्य देवी देवता जा चूंसे हैं और कितनेक जैन मन्दिरों को तोड़फोड़ के उन पर मस्जिदें बनादी गई है और बहुत से जैन मन्दिर जि.
वस्था भोग रहे हैं इस हालत में भी हमारे धनामिमानी दानेश्वरी लोग पहिले के मन्दिर होते हुए भी उनको अनावश्यक समझ मात्र अपनी नाम्बरी के लिये नये मन्दिर बनाने में ही अपने धर्म की उमति