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________________ (१५४ ) जैन जाति महोदय प्रकरण क्ठा . करते हैं उतना लाभ हमें नहीं मिलता है और दिन व दिन हमारे हाथसे व्यापार चला जा रहा है और समाज में नौकरी की याचना करनेवालों की संख्या बढती जा रही है। इसपर भाप सोच सक्ते हैं कि हमारी समाज को उच्च विद्या का कितना प्रेम है और किस ढंग पर हमारी पढाई हो रही है और अर्द्ध दग्ध पढाईवालों की धर्मपर कितनी श्रद्धा है और भविष्य में इसका क्या फल होगा?। हमारे समाज अग्रेसरों को चाहिए कि माठ वर्ष तक तो अपने सन्तान को किसी प्रकार की चिन्ता फिक्र में न डाले पर उसके स्वास्थ्य की रक्षा करे बाद आठ वर्षतक गुरुकुल वास में रखकर उनको धर्म संस्कार के साथ उस पढाई करावें वह पढाई कब हो सके कि गुरुकुलादि संस्थामें भेज के अपने लड़के को भूल ही जाय तब, वह लड़का वीर विद्यावान बन सके। पर हमारे शेठजी को इतना सन्तोष कहां हैं उनको तो बारह वर्ष में ही लड़के की साकिर बहु घर लानी है। (१८) हमारी समाज में स्वामिवात्सल्य हमारे शास्त्रकारोने भन्योन्य धर्मक्रिया के साथ स्वामिवात्सस्यको सबसे उच्च स्थान दिया है और उसका तात्वीक रहस्य भी यहांतक बतलाया है कि स्वामिवात्सल्यसे तीर्थकर नाम कर्म उपार्जन कर सके पर भाज उसका अर्थ कुछ और ही हो रहा है नाम्बरी के लिए हमारे धनाल्य वीर स्वामिवात्सल्य के नामसे फी
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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