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( २४०) जैन जाति महोदय प्रकरण पांना. .
प्रारम्भमें हमारा मनोगतभाव जैन जातियों का महोदय लिखने का था पर जैसे जैसे इतिहास की सामग्री मिलती गई वैसे वैसे उसमें अभिवृद्धि होती गई। केवल जैन जातियों की उत्पत्ति के इतिहाससे यह प्रन्थ बृहद् हो गया इससे शेष इतिहास दूसरे खण्डमे लिखने की अनिवार्य आवश्यक्ता होना स्वाभाविक वात है पाठकवर्ग कुच्छ समय के लिये धैर्य रक्खे जहाँतक बन सकेगम तो दूसरा खण्ड भी जल्दी ही तय्यार होगा । श्रीरस्तु कल्याणमस्तु ।
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इति जैन जाति महोदय पांचवा प्रकरण समाप्तम् ।