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________________ लेखक का संक्षिप्त परिचय. . (१३) नाभ्यास किया था किन्तु इस वर्ष आपने बीकानेर में पूज्यजी के साथ में रहते हुए विशेष ज्ञानाभ्यास किया । स्मरण शक्ति के विकसित होने के कारण जो कार्य दूसरों के लिये क्लिष्ट प्रतीत होता है वह आपके लिये बिल्कुल सरल था। इस चातुर्मास में आपने २१ थोकड़े कण्ठस्थ किये तथा प्राचारंग सूत्र और उत्तराध्ययन सूत्र का मननपूर्वक अध्ययन (वाचना) किया। शेष रहे उत्तराध्ययन के अध्ययनों को भी बाद में आपने कंठाग्र कर लिया। तपस्या का सिलसिला उसी प्रकार जारी रहा । तपस्या करना स्वास्थ्य और आत्मकल्याण दोनों के लिये उपयोगी है इसी हेतु से आपने एक शूरवीर की तरह इस वर्ष के चातुर्मास में अन्य तपस्वी साधुओं की वैयावच्च करते हुए भी इस प्रकार तपस्या की, अठाई १, पचोला १, तेले ६, बेले ७ तथा साथ में आपने कई फुटकल उपवास भी किये। बीकानेर जैसे बड़े नगरकी बृहत् परिषद में व्याख्यान देने का अवसर आप श्री को १५ दिन तक मिला, कारण पूज्य श्री रुग्णावस्था में थे । यद्यपि यह दूसरा ही वर्ष दीक्षित हुए हुआ था तथापि आपने निर्भीकता पूर्वक ऐसे ढंग से व्याख्यान दिया कि सब को यह जान कर आश्चर्य हुआ कि एक नवदीक्षित साधु अपने थोड़े समय के अनुभव से किस प्रकार प्रभावोत्पादक अभिभाषण देते हैं। सब को आपके व्याख्यान से पूरा संतोष हुआ। चातुर्मास व्यतीत होनेपर आप बीकानेर से नागौर, डेह,
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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