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________________ दूसरी शंका का समाधान. (७) बडे राजा महाराजाओंने जो भादर सत्कार और अनेक खीताप जैन शातियों को दीया है व स्थात् ही अन्य जातियोंके लिये दीया हो, न जाने इनका ही तो फल न हो कि वह जातियों मोसवालों कि इस आबादी इज्जत को सहन न कर वह पान्तरध्वनी निकासी हो कि ओसवालोंमें शूद्र सामिल है___मोसवाल ज्ञातिमें शूद्र वर्ण सामिल होते तो ब्राह्मणाप्रेश्वर संज्जभव भट्ट, भद्रबाहु, सिद्धसेन दिवाकर, हरिभद्र और बप्पभट्टी आदि हजारों ब्राह्मण जैन धर्म स्वीकार कर इन झावियोंका प्राम. य नहीं लेते और कुमरिल भट्ट तथा शंकराचार्य के समय कितनीक अज्ञात जैन जनोंने, जैन धर्म छोड शैव-वैष्णव धर्म स्वीकार कर लेने पर उनको शूद्र ज्ञातिमें सामिल न कर उच्च ज्ञातियोंमे मिलाली तो क्या उनको खबर नहीं थी कि जैन जातियों में शद्र सामिल है ? मगर एसा नहीं था अर्थात् जैन जातियां पवित्र उच्च कुलसे बनी हुई है एसी मान्यता उन लोगों की भी थी. ____अगर उस जमानामें जैनाचार्य शूद्र वर्ण को भी ओसवाल ज्ञातिमें मिला देते तो हमारे पडोसमें रहनेवाले शैव-वैष्णव धर्म पालनेवाले उच्च वर्णके लोग व वडे बडे राजा महाराजा भोसवाल ज्ञातिके साथ जो उच्च व्यवहार रखते थे और रख रहे हैं वह किसी प्रकार से नहीं रखते ? जैसे अधूनिक समय अंग्रेजोंको राजत्व काल में शूद्रोंके साथ पहिला जमाने की जीतनी घृणा नहीं रखी जाति है तथापि शूद्र वर्ण को सामिल करनेसे इसाइयोंका धर्म प्रचार वहाँ
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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