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________________ बोसमात शाति सबब मिर्षय. . (५) त्पत्तिका सम्य विक्रम पूर्व ४०० वर्ष पर जनम माविक विकास स्वं सके और उपकेश वंशको प्राचीन मानेमें श्रद्धासंफा बने । (१) विक्रमको बारहवी शताब्दी और इनके पिच्छेके सेंकडो हजारों शिलालेख उपकेश ज्ञातिके मिलते है वास्ते उस समयके प्रमाण यहाँ देने की भावश्यक्ता नहीं है ईसके पूर्वकालिन प्रमाणोंकी खास जरूरत है वह ही यहापर दिये जाते है___(२) समराझ्च कथाके सारमें लिखा है कि उएस नगस्के लोक ब्राह्मणोंके करसे मुक्त है अर्थात् उपकेश ज्ञातिके गुरु ब्राह्मण नहीं है यह बात विक्रम पूर्व ४०० वर्षकी है और कथा विक्रमकी छठी सदीमें लिखी गई है उस समयसे पूर्व भी यह मान्यता थी. इस लेखसे उपकेश ज्ञातिकी प्राचीनता सिद्ध होती है । यथा तस्मात् उकेश ज्ञातिनां गुरवो ब्राह्मणा नहि । उएसनगरं सर्व कर रीण समृद्धिमत् ॥ सर्वथा सर्व निर्मुक्तमुएसा नगरं परम् । तत्प्रभृति सजातमिति लोकप्रवीणम् ॥ ३६॥ (३) प्राचार्य बप्पभट्टीसूरि जैन संसारमें बहुत प्रख्यात है जिन्होंने ग्वालियरका राजा प्रामको प्रतिबोध दे जैन बनाया उसके एक गणि व्यवहारियाकी पुत्री थीं उसकि सन्तानको प्रोसस (उपकेसवंस) में सामिल कर दी उनका गौत्र राजकोष्टागर हुवा जिस ज्ञातिमें सिद्धाचलका अन्तिमोद्धार कर्ता कामाशाह हुषा जिस्का शिलालेख शत्रुजय तीर्थपर प्रादीश्वरके मन्दिरमें है वह लेख प्राचीन
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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