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वीर संवत् ४०० वर्ष तक। "जैन जाति महोदय" नामक प्रस्तुत पुस्तक लिखने का खास उद्देश तो जैन जातियों की उत्पति से लेकर जैन जातियों के महोदय समयका इतिहास लिखने का था पर जैसे जैसे इतिहास की सामग्री अधिकरूप में प्राप्त होती गई वैसे वैसे मेरे विचारों में भी वृद्धि होती गई। यहाँ तक कि जिस इतिहासको १००० पृष्टों में रमाप्त करने का विचार था आज उसके लिये ५००० पृष्ठोंकी अवश्यक्ता प्रतीत होने लगी है इस कारण से इस बृहत् ग्रन्थ के चार खण्ड करने की अनिवार्य आवश्यत्ता हुई है इस प्रथम खण्डमें जैन जातियों की उत्पति व अठारह गौत्रों के अ. तिरिक्त जैनधर्मकी प्राचीनता, चौबीम तीर्थंकरों का जीवन. पार्श्व पट्टावली. वीर वंशावली, जैनधर्म का प्राचीन इतिहास और कलिङ्ग देश का इतिहाम अर्थात् वीर संवत् ४०० वर्षों तक के इतिहास में ही १००० पृष्ट लिखे जा चुके हैं इसलिये शेष जैन जातियों की उत्पति व उनके शूरवीर दानवीर नर रत्नोंका प्रमाणिक इतिहास क्रमशः दूसरे खण्डों में लिखा जा रहा है उम्मेद है कि इसको पठन श्रवण मनन करने से अपने पूर्वजों के गुण गौरव और वीरता का सञ्चार जैन जातिके आधुनिक युवकों के हृदय में अवश्य होगा पर इन सब खण्डो के लिये हमारे पाठकों को स्वल्प समय के लिये धैर्य रखना होगा जहाँतक बन सकेगा यह कार्य शीघ्रता पूर्वक तथा इससे भी बढ़िया ढंगसे किया जायगा.
'लेखक'-..
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