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समर्पणवामें, : पूज्यपाद प्रातःस्मरणीय परम योगीराज
मुनिवर्य श्री रत्नविजयजी महाराज । पूज्य गुरुवर.
जिस उञ्जवल उद्देश को सिद्ध करने के लिये आपने ! दस वर्ष की वयस में ही आदर्श वीर पुरुष की तरह निर्भी
कता पूर्वक सांसारिक कुवृत्तियों से मुँह मोड़ा था उस उद्देश को सिद्ध करने का मार्ग आपने पूरे प्रहारह वर्ष के घोर प्रयत्न के पश्चात् प्राप्त किया। फिर शास्त्रविशारद जैनाचार्य श्रीमान् विजयधर्म सूरीश्वरजी के चरण सरोज में रहकर जिस उत्कएठा से आपने चचरीकवत् सत्यता का मार्ग अनुसरण किया । बड़ी कृपाकर. आपने मुझ जैसे प्रामर प्राणी को उस पथका अवलम्बी बनाया।
पूज्यवर! मापने मिथ्यात्व के राह पर भटकते हुए जिस पथिक को शुद्ध समकित-मार्ग का पथिक बनाया है तथा मापने जिस अनुचर को ज्ञानामृत का पान करा उसके हृदयके संदेहों
को दूर किया है उसीकी एक कृति का यह प्रथम प्रयास | भक्ति और श्रद्धा सहित भाप ही की सेवा में समर्पित है।
विनीतज्ञानसुन्दर।