SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तःस्मरणीय पूज्यपाद श्रोसवंश स्थापक परोपकारी स्वनामधन्य महात्मा परमयोगी निस्पृही पाचार्य श्री रत्नप्रभ सूरि महाराज। आपने आज से २४८६ वर्ष पहले मरुस्थल में विहार , कर अपने अपूर्व बुद्धिबल से महाजन संघ की स्थापना की। , पारस्परिक उच्च नीच के भेदभाव को छुड़ा कर · उपकेशपुर के राजा और प्रजा को प्रतिबोध देकर जैनी बनाया । मिथ्यात्वकी राह से बचा कर शुद्ध समकित का पथ दर्शा कर वास्तव में । | आपने हमारे पर असीम उपकार किया है जिसका ऋण हम कदापि नहीं चुका सकते। ___ यह आपश्री ही का प्रताप है कि आज हम पवित्र और ! पुनीत जैन धर्म की अहिंसा-पताका के नीचे सुख और शांति पूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। ऐसा कृतघ्नी कौन होगा जो ऐमे परोपकारी महात्मा के उपकार को भूल जाय। __आप के स्मरण मात्र से हमारा हृदय प्रफुल्लित होता है । वास्तव में हम पूर्ण सोभाग्यशाली हैं कि आपने हमारे प्रान्त में विचरण कर दया की सरिता प्रवाहित की थी। आपकी अचल धवल कीर्ति जगत में जैन जातियों के अस्तित्व तक अमिट रहेगी। धन्य है भारतभूमिको जिस पर ऐसे ऐसे महात्माओंने जन्म लेकर अपने अपूर्व आत्मबल में सारे संसार को चकित कर दिया है। आपके पदपद्मपञ्जर में साधिन, मजुल-मानस-मराल मुनि ज्ञानसुन्दर। .
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy