SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (६२) जैन जाति महोदय. १००० ओसवालों का पद्यमय इतिहास । १००० समवसरण प्रकरण । कूल २००० प्रतिए प्रकाशित हुई तथा श्रावकोंने उत्साह से समवसरण की रचना में करीबन पाँच सहस्र रुपये रत्नर्च किये । पुनः आपश्री रानी स्टेशन वरकाण और बाली होकर लुनावे पधारे। विक्रम संवत् १९८६ का चातुर्मास ( लुनावा )। . ___ आप श्री का तेईसवाँ चातुर्मास लुनावा में है। प्रापश्री की वाणी द्वारा पीयूष वर्षा बड़े आनन्द से बरस रही है । वाक् सुधा का निर्मल श्रोत प्रवाहित होता हुआ श्रोताओं के संदिग्ध को दूर भगा रहा है । आपश्री व्याख्यान में श्री भगवतीजी सूत्र इस ढंग से सुनाते हैं कि व्याख्यान श्रवण के हित जनता ठठ्ठ लगजाता है। यह अनुपम दृश्य देखे ही बन आता है। श्री भगवतीजी की पूजा में ज्ञान खाते में रु. ८५०) आठ सौ पचास रुपये एकत्रित हुए हैं। श्रावकों के मन में खूब धार्मिक प्रेम है। वे धार्मिक कृत्यों में ही अपना अधिकांश समय बिताते हैं। जिस ऐतिहासिक खोज के आधार पर आप पिछले कई वर्षों से 'जैन जाति महोदय ' ग्रंथकी रचना कर रहे थे उसका प्रथम खण्ड इसी वर्ष पूरा हुआ है । सब मिलाकर इस बार ये पुस्तकें प्रकाशित हुई। १००० प्राचीन गुण छन्दावली भाग तीसरा । १००० , , , भाग चौथा ।
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy