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जैन जाति महोदय. ऐसा कोई वर्ष नहीं वीतता कि प्रापश्री की बनाई हुई कुछ पुस्तके प्रकाशित नहीं होती हों। ऐसा क्यों न हो ! जब कि आपश्री की उत्कट अभिरुचि साहित्य प्रचार की ओर है । इस वर्ष ये पुस्तकें प्रकाशित हुई :
१००० जैन जाति निर्णय प्रथमाङ्क द्वितीयाङ्क । १००० पञ्च प्रतिक्रमण सूत्र । १००० स्तबन संग्रह चतुर्थ भाग-तृतीय वार । .
३००० तीन सहस्त्र प्रतिएँ।
पीपाड से विहारकर आप कापरडाजी की यात्रा कर वीसलपुर पधार । यहाँ पर आप के उपदेश से जैन श्वेताम्बर पुस्तकालय की स्थापना हुई। शान्तिस्नात्र पूजापूर्वक मन्दिर जी की अाशातना मीटाइ गइ थी। फिर आप पालासनी, कापाडा और बीलाडा पधारे यहाँपर चैत्र कृष्ण ३ को स्थानक० साधु गम्भीग्मलजी को जैन दीक्षा दे उनका नाम गुणसुन्दरजी ग्क्खा। वहाँ से पिपाड़ पधारे। यहाँ श्रोलियों का अठ्ठाइ महोत्सव वड़ ही धामधूम से हुआ। तत्पश्चात् भाप प्रतिष्ठा के सुअवसर पर वगड़ी पधारे बाद सीयाट सोजन खारिया होते हुए बीलाड़े पधारे । विक्रम संवत् १९८४ का चातुर्मास (बीलाड़ा)।
___ आपश्री का इक्कीसवाँ चातुर्मास बीलाड़े हुआ । बीलादे के श्रावकों की अभिलाषा कई मुद्दतों बाद अब पूर्ण हुई । उन्हें
आप जेसे तत्ववेत्ता, प्रगाढ पण्डित एवं ऐतिहासिक अनुसन्धान, व उपदेशक उपलब्ध हुआ यह उन के लिये परम अहोभाग्य की