SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १००० (..) जैन जाति महोदय. करानेके लिये सदैव तैयार रहती है । न कभी इन्कार करती है. न थकती ही है । इस वर्ष१००० शीघ्रबोध भाग ११ वाँ १००० शीघ्रबोध भाग १८ १००० , , १२ वाँ १००० , , १६ वाँ १००० , , १३ वाँ १००० , , २० वाँ १००० , , १४ वा १००० ,, , २१ वाँ १००० , , १५ वा १००० , , २२ वा १००० , , १६ वाँ १००० ,, ,, २३ वाँ । ,, ,, १७ वाँ १००० , २४ वाँ ५००० द्रव्यानुयोग प्र. प्र. प्रथमवार १००० ,, ,, २५ वाँ १००० द्रव्यानुयोग प्र.प्र. दूसरीवार १००० आनंदघन चौवीसी १००० वर्णमाला । १००० हितशिक्षा प्रश्नोत्तर । १००० तीन चतुर्मास-दिग्दर्शन । २५००० कुल प्रतिऐं। ___ यहाँ के श्री संघने उत्साहित करीबन होकर ५०००) पांच हजार रुपये खर्च कर दिव्य समवसरण की रचना की थी। यह एक फलोधी की जनता के लिये अपूर्वावसर था । जैनधर्म की उन्नति में अलौकिक वृद्धि अवर्णनीय थी। श्रावकों का उत्साह सराहनीय था । प्रापश्रीने इन तीन वर्षों में ३७ भागमों की वाचना तथा १४ प्रकरण व्याख्यानद्वारा फरमाए थे | आपने इस वर्ष कई श्रावकों को धार्मिक ज्ञानाभ्यास भी कराया था । प्रतिक्रमण-प्रकरण और तत्वज्ञान ही आपके पढ़ाये हुए मुख्य विषय थे । फल स्वरूपमें
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy