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________________ ( १६६ ) जैन जाति महोदय प्रकरण कठ्ठा. और तत्वज्ञान प्राचारझान समझाने में अपना कर्तव्य समझते थे; इस कारण से गजा महाराजा जैन धर्म म्वीकार कर जैन धर्म की उन्नति किया करते थे, अगर शास्त्रार्थ का काम पड़ता तो वे वितण्डावाद नहीं करते थे पर राजा महाराजाओं को मध्यस्थ रख राज सभाओं में अपना सत्य प्रमाणिक और न्याययुक्त तत्व को इस कदर प्रतिपादित करते थे कि वादियों को सत्य के सामने शिर झुकाना ही पड़ता और जैन धर्म की विजयपर राजा महाराजाओं की श्रद्धा विशेष मजबूत हो जाती थी इत्यादि हमारे पूर्वाचार्यों की इस प्रवृति से ही जैन धर्म की दिन व दिन उन्नति हुआ करती थी। यह युक्ति स्वयं सिद्ध है कि पिता का संस्कार पुत्र में हुआ करता है अत:एव हमारे शासन स्थंभ प्राचार्य महाराज के उत्तम संस्कार उन की सन्तान अर्थात् मुनिगणमें हो जाना स्वाभाविक बात है उस समय के मुनिवर हमारे प्राचार्यों के भुजतुल्य सहा. यक थे और उन की सहायता बल से ही आपश्रीने अपने लक्षबिन्दु को पार किया था। ___ हमारे प्राचार्यदेव दिक्षा लेनेवाले महानुभावों को भगवती दिक्षा और कष्टमय मुनि जीवन पहिले से ही खूब समझाया करते थे. वैराग्य कसोटी पर उन भव्यों की खूब परिक्षा भी किया करते थे कि दिक्षा लेने के बाद न तो उनको नासभाग करना पड़ता था, और न गुप्त अत्याचार की भावना ही पैदा होती थी। योग्यायोग्य का विचार किए विगर केवल शिष्य संख्या बढाने की
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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