________________
-
-
६३५
मुनीम चुनीलाल का कल्याण चुन्नीलाल के सम्बन्धी थे; उन्होंने चुन्नीलाल को विवाह करने के लिए बहुत कुछ कहासुना, चुन्नीलाल का मानस भी मुक गया, किन्तु मुनिश्री ने चुन्नीलाल भाई को ऐसा उपदेश दिया था कि उन्होंने उसी समय चतुर्थ व्रत धारण कर लिया और यह प्रतिज्ञा कर ली कि मेरे पास जो धन माल है, उस पर जब तक मैं मौजूद हूँ मेरा हक है, तथा मेरे देहान्त के पश्चात् सब का सब ओसियाँ तीर्थ में साधारण खाते भेंट कर देता हूँ ताकि मेरा कोई भी सम्बन्धी उज नहीं कर सके । बस, फिर तो चुनीलाल भाई निर्भय हो गया, पर भाग्यवश श्राप थोड़े ही समय जीवित रहे; अन्त समय मुनिश्री का परोमोपकार माना कि यदि मुनिश्री मुझे इतना जोर दे कर उपदेश नहीं देते तो मैं एक बालिका को थोड़े ही दिनों में विधवा बना कर वन पाप कीपोट परभव में साथ ले जाता। अतःमुनिश्री को शीघ्र कल्याण हो।