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________________ आदर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड . ६३० उदय-कल एक कमेटी बनाकर इसकी व्यवस्था करेंगे। मुनिः-कमेटी से कुछ काम नहीं होगा, कारण कमेटी में तो आप बहुत से मेम्बर चुनोगे, अतः उसमें मतभेद अवश्य ही पड़ जावेगा, इस हालत में आप काम नहीं चला सकोगे। मेरी राय तो यही है कि कमेटी वगैरहः कुछ भी नहीं की जावे और श्राप इस काम को देखा करें; जो काम देखे वही मेम्बर, वही प्रेसीडेन्ट और वही सेक्रेटरी है । वास्तव में आप को काम करना है, तो फिर स्वतंत्रता से ही क्यों ना कया जावे ? उदयः-हां ठीक है, अब बात हमारी समझ में आ गई है। मुनि०:-कल जब आप लोग एकत्र हो मिले तब आप सब मिल कर मेरे पास अवें; मैं कह दूंगा कि फिलहाल एक वर्ष बीकानेर वाले काम चलावेंगे, आगे फिर देखा जावेगा। समीरमलजी, उदयचंदजी के सब बात समझ में आ गई, तथा वे दिल में समझ गये कि फलौदी वालों के अन्दरूनी दर्द तो मुनिश्री ने कहा वह गच्छ कदाग्रह का ही है। दूसरे दिन मेला था; सब भक्त लोगों ने एकत्रित हो प्रमु की सवारी निकाली और भक्ति कर अपने जीवन को सफल नाय ।। रात्रि में फिर मीटिंग हुई; बोडिंग के सवाल के साथ चुन्नीलाल मुनीम ने यह भी सवाल पेश किया कि जो जगह खुली पड़ी है, तथा वहां पर कोठरियों का हुक्म हुआ है। बहुत से लोगों की तथा मुनिश्री की गय एक ही हॉल बनाने की है, अतः आप लोग इस विषय में क्या कहते हो ! नेमिचंदजी ने कहा, हम भी चाहते हैं कि यहां पर हॉल क्यों महल बन जावे तो अच्छा
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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