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________________ ६२३ मेझरनामा में वृद्धि शुक्ला २ के दिन ओसियाँ आकर शासनाधीश भगवान् महावीर की यात्रा कर आनंद को प्राप्त हुए । १०१ मुनीश्री का प्रोसियाँ में पधारना मन्दिरजी से बाहर आकर बोर्डिङ्ग का निरीक्षण किया तो २. लड़के जैनों के और ३ जैनेत्तरों के, कुल ५ लड़के नजर आये । वहाँ की परिस्थिति मुनीम द्वारा सुनी और मुनीम ने कहा कि कल मेले पर इन लड़कों को बिदा देकर बोर्डिंग उठा देने का नश्चय हुआ है; पर हमारा अहो भाग्य है कि आप पधार गये, आशा है बोर्डिंग की जड़ फिर हरी भरी हो फले फूलेगी । मुनि० - मुनीमजी फिक्र मत करो, गुरु कृपा से सब अच्छा होगा; फिर भी यह कहावत ठीक है कि जो होता है वह अच्छे के लिये ही होता है; क्योंकि ऐसा होने से यह तो परीक्षा हो गई कि श्रावक लोग शासन के कैसे भक्त हैं; परमार्थ का कार्य किस प्रकार करते हैं, इत्यादि । मुनीम० - साहिबजी ! धर्म की नाव चलाने वाले तो आप साधु लोग ही हैं। मुनिः - विद्यार्थी क्यों चले गये ? मुनीम० - खर्चे का इन्तजाम नहीं है । मुनि० - अभी सूरत से रकम भेजवाई थी न? मुनीम० - पेढी की कुछ रकम देखी थी जिसमें जमा करला मुनि० -- यह तो ठीक है; किन्तु वास्तविक अन्दरूनी दर्द क्या है सो कहो। तुम छिपा कर क्यों रखते हो; मैंने थोड़ा बहुत हाल जोधपुर में सुन लिया है ।
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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