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________________ ६१५ अहमदाबाद से विहार रुवाटा कंपी जाय छे बीजो ते जमानो जुदो अने आजनो जमानो जुदों अने ते लिखाण तो पुरांणो थई गयो छे पण आ मेझरनामो तो नवो बंड जगाव से। सम्पतलाल गमे ते उपाये मेझरनामो बन्ध करो तो ज सारूँछे। सम्पत०-साहिब भवि भाव ने कौन टाली सके छे, अगर रूपविजयजी ने श्राप दीक्षा न आपता अने ज्ञानसुन्दरजी ने अपनावता तो आ प्रकार नो पश्चाताप करवानो समय नहीं ज आवतो । पण आप घणी उतावल थी काम किधो छ । । सूरिजी.-सम्पतलाल ! ते वखते अमे प्रेम नथी जाणता हताके आ मारवाड़ी साधु अमाराथी सेवा प्रकार नो बदलो लेशे ने एक अमाग अपराध ने लिधे अखिल शासन डोली नाकशे पण हिवेतो तेनो उपाय ज शु थइ सके ? इत्यादि । १०० मुनिश्री अहमदाबाद से अोसियाँ र ___ इधर मुनिश्री सरखेज से शोरीसर पधारे यहाँ बड़े २ बिंब भूमि से प्रगट हुए और उनको बनाने वाला वस्तुपाल तेजपाल बतलाये जाते थे, वहाँ की यात्रा कर कलोल होकर पानसर आये, वहाँ महावीर के दर्शन कर भोयणी श्रीमल्लीनाथजी की यात्रा की। वहाँ अहमदाबाद के बहुत से श्रावक आये हुए थे उन्होंकी आग्रह से एक व्याख्यान भी दिया, वहाँ से जेटाणे होते हुए म्हेसाणे आये, वहां तीन दिन ठहरे, दो व्याख्यान हुए तथा जनता पर वीर वाणी का अच्छा प्रभाव पड़ा, वहाँ के लोगों ने कुछ दिन ठहरने के लिए विनती की, पर श्रापको जल्दी से मारवाड़ जाना था। ___ म्हेसाना से वड़नगर शिनगर खेरालू होकर आप तारंगाजी
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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