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मादर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड
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जी महाराज इतने दयालु, मधुर भाषी और मिलन सार थे कि कोई भी उनके पास जाओ, उनका यथोचित सत्कार कर उनके दिल को खुश कर दिया करते थे । अतः आपके स्वागत में बाजा गाजा, नक्कार-निशान, कोतल, मोटरें आदि तो थी ही, पर सातों उपाश्रय के सब श्रावक, श्राविकाएं भी उपस्थित थे । बादशाही जमाने के गेरदार जामे और आभषण पहिने हुए सेठियां. को देख सूरिजी महाराज ने कहा कि सुरत वास्तव में एक जैन पुरी ही है । धर्म पर लोगों की अत्यन्त श्रद्धा और अच्छा प्रेम है । जब सूरिजी गोपीपुरा में पहुंचे तो नेमुभाई की वाड़ी के उपाश्रय में मंगला चरण एवं अल्प किन्तु सारगर्भित देशना दी, फिर प्रभावना के साथ सभा विसर्जन हुई । सूरिजी का सुरत में पहिले पहल ही पधारना हुआ छतः जनता के दिल में बड़ा ही उत्साह था। _____ जब गोपीपुरा में सूरिजी का व्याख्यान होने लगा तो बड़ा चोटा में मुनिश्री ने अपना व्याख्यान बन्द कर दिया और कभी कभी योगीराज तथा मुनिश्री सूरिजी का व्याख्यान सुनने को गोपीपुरा भी चले जाते थे। ___जब भगवान महावीर की जयन्ती का दिन निकट आया तो श्रीसंघ द्वारा यह निश्चय किया गया कि जयन्ती एक ही स्थान होनी चाहिये और इसके लिये नेमुभाई की वाड़ी में सरिजी की अध्यक्षता में ही होना निश्चय किया तथा उत्सव के लिए बड़ी भारी तैयारियां होने लगीं । जनता को नोटिस द्वारा खबर पहुँचा दी थी अतः ठीक जयन्ती के समय जैन-जैनेतर लोग इतने जमा हुए कि लोगों को वहाँ बैठने को स्थान तक भी मुश्किल से मिला मंगला चरण के पश्चात् सबसे पहिले मुनि न्याय-विजयजी का