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________________ ५७० आदर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड योगी०-जब आचार्य ही वीना योग के होने लग गये तो बड़ी दीक्षा को तो कौन पूछता है ? और ज्ञानसुन्दरजी ऐसे कल्पित योग करना भी नहीं चाहते हैं, अतः सच्चा योग तो उन्हो ने कर लिया है। सरिजी-- हाँ, तुम्हारा कहना सत्य है, मैं बिना योग का आचार्य बन गया हूँ। ___ योगी-मैं आपके लिए ही नहीं कहता हूँ, पर यह प्रथा स्वामि आत्मारामजी की चलाई हुई है, जो कि एक समर्थ महापुरुष थे, और उन्होंने याग नहीं करने पर भी अपने साधुओं को बड़ी दीक्षा दी थी तथा आज वह प्रमाणिक भी समझी जा सकती है, तो फिर ज्ञानसुन्दरजी की बड़ी दीक्षा के लिए ही ऐसा क्यों कहा जाता है ? सूरिजी-पर बड़ी दीक्षा तो विना योग नहीं हो सकती है ? योगी-व्यवहार सूत्र में कहा है कि छोटी दीक्षा के बाद कम से कम सातवें दिन बड़ी दीक्षा आ सकती है। यदि दीक्षा के योग्य हुए साधु को सातदिनों में बड़ी दीक्षा नहीं दी जावे तो नहीं देने वाले श्राचार्य या अग्रसर साधुको प्रायश्चित होता है, ऐसा मूल सूत्रकारों ने बतलाया है । तब, फिर मैंने ज्ञानसुन्दरजी को बड़ी दीक्षा दे कर कौनसा अन्याय किया है ? __सूरिजी-पर आज तो यह प्रवृति सर्वत्र चल रही है कि ७ दिन मांडली के ८ दिन आवश्यक सूत्र के, और १५ दिन दश वैकालिक सूत्र के एवं एक मास का योग किए बिना बड़ी दीक्षा नहीं दी जाती है। योगी०-क्या हम प्रवृति को सत्य मानें और सूत्र के पाठ
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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