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________________ ५३९ खंभात में शास्त्रों की चर्चा भात पहुँचे । तथा वहाँ जाकर बाबू पन्नालाल अंबालाल की धर्म शाला में ठहर गए । ८५ खम्भात में शास्त्रों की चर्चा जिस समय हमारे त्रिपुटी मुनिराज खम्भात में पहुँचे उस समय आचार्यविजयकमलसूरि अपने १७ साधुओं के साथ खंभात नगर में विराजमान थे माणकमुनिजी आदि तीनों साधु सूरि जी के दर्शनार्थ उनके उपाश्रय गये पर वहां जाकर वे क्या देखते हैं कि श्राचार्यादि साधु तो एक ओर बैठे थे और मुनि दानविजय एक तरफ एकान्त में बैठा हुआ एक युवा विधाव को उपदेश दे रहा था उस विधवा ने कुछ रुपये दात विजय के पास रखा था जिसको उठाकर दानविजय ने अपनी आलमारी में रख दिया । माणकमुनि एक ओर खड़ा रहकर इस वितिकार को ज्यों का त्यों देखा फिर उन से रहा नहीं गया अतः माणकमुनि दानविजय के पास जाकर पूछा । माणक—पन्यासों को पापी बतलाने वाले दानविजयजी आप यह क्या जुल्म कर रहे हो ? दानविजय - यह तो ज्ञान की पूजा की है और यह द्रव्य ज्ञानखाता में काम आवेगा । इसमें तुमको पूछने एवं कहने का क्या अधिकार है ? माणक — इसका भविष्य में क्या परिणाम आवेगा और आप के शिष्यों पर कैसा बुरा प्रभाव पड़ेगा एक कनक ही मनुष्य को रसातल में पहुँचा देता है अतः आपके इस कृत्य में तो कनक और कामनी दोनों का अनुचित व्यवहार दीखता है क्या यह साधुओंका आचार है कि एक युवा विधवा के साथ एकान्त में बातें करना
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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