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________________ पतित जैनों का उद्धार ५३७ आप अपने मंदिरों को संभालें । जब मुनिवरों को इस बात की खबर हुई तो उन पाटीदारों को बुलाकर खूब समझाया; उन्होंने कहा कि आप हमारे ग्राम में पधारें, इस पर तीनों मुनिराज पाटीदारों के साथ उनके ग्राम में जाकर स्वामिनारायण मतवालों से धर्म के विषय में शांति के साथ वार्तालाप कर उनको निरुत्तर कर दिए । तथा धर्म से पतित होते हुए २०० घरों का उद्धार कर दि या । इस प्रकार की गड़बड़ होने का कारण यही है कि गुजराती साधुओं ने मुख्य मुख्य शहरों को अपने आराम के लिये निवास स्थान सा ही बना लिया है, उन्होंने प्रामों में जाने का न तो कभी कष्ट उठाया और न कभी उन ग्रामीण श्रावकों को उपदेश दिया; कई तो ऐसे नागर ब्राह्मण बन बैठे हैं कि उन पाटीदार श्रावकों के घर का आहार पानी तक भी नहीं लेते हैं, जैन धर्म पालने वालों से इस प्रकार घृणा करने से यदि वे जैनधर्म को त्याग दें तो इसमें आश्चर्य की कौनसी बात है ? मुनिश्री गुजरात के विहार के दरमियान जिस गांव में पहुँचे वहां पूछने से मालूम हुआ कि जहां सैकड़ों घर जैन पाटीदार, माढ़, गुर्जर, निमा, भावसार वगैरा के थे, वे प्रायः सब स्वामिनारायण पंथ में चले गए; इसका कारण एक तो उनको उपदेश ही नहीं मिलता है, दूसरे उनके साथ रोटी बेटी व्यवहार नहीं था, तीसरे जैन साधु उनसे घृणा करते थे । अतएव स्वामिनारायण मत के उपदेशकों ने उनको अपने मत में मिला लिये । मुनिश्री को मेरनामा लिखने में ऐसे ऐसे अनेक कारण मिलते गये कि जिसका कलेवर मनसा से भी कई गुना अधिक चढ़ता गया ।
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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