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श्री पार्श्वनाथायनमः
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श्री रत्नप्रभसूरीश्वर पादपद्मभ्यो नमः ।
श्रीमद् "मरुधरदेशोद्धारक, साहित्यप्रचारक, इतिहास प्रेमी, तात्विक एवं अध्यात्म विषय शीघ्रबोधादिप्रन्थ, दार्शनिक विषय षदर्शन, !! चार समवसरणादि, ऐतिहासिक विषय जैन जाति महोदय, मूर्तिपूजाकाप्राचीनइतिहास, और धर्मवीर समरसिंहादि, समाजसुधारविषय मेझर नामादि, विद्या प्रचार में आदर्शशिक्षादि, औपदेशिक व्याख्या विलासादि, क्रियास्मिक, प्रतिक्रमण-प्रभुपूजादि, चर्चात्मक सिद्धप्रतिमामुक्तावली, एवं गयवरविलास प्रतिमा छत्तीसी, दान छत्तीसी, अनुकम्पा छत्तीसी, भक्तिरस में चैत्यचन्दन, स्तुतिये, गजलें,सिलोका निशानी और स्तवनादि
विविध विषय"
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