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पाप का घड़ा कैसे फूटा
करतून वाला यति की निर्दयता पर थु-थु कार कर रही थी।
अगर तगर चन्दन नलयेर धूपादि सुगन्धी पदार्थों से पन्यासजी के कलेवर का अग्नी-संस्कार किया उस दिन सूरती ला. लाओं ने गायों को घास, गरीबों को अन्न वस्त्र तथा और भी पुन्य किया था मृत्यु विमान के पीछे सोना चांदी के फूल सच्चे मोती और रुपये वगैरह करीब ५०००) रुपयों की उछाल की थी।
अग्नि-संस्कार कर लोग वापिस आये थे तो सब के चहरे पर उदासीनता थी जब योगिराजश्री के पास मंगलीक सुनने के लिये आये तो योगिराजश्री ने परम शान्तिमय उपदेश दिया कि संसार की सब वस्तुएं नाशमान हैं कोई भी कार्य किसी न किसी निमित्त कारण से बनता हैं पर समझदारों का यह कर्तव्य है कि अपना लाभ में निमित्त कारण और अपना नुक्सान में उपादान कारण को याद करना चाहिये कि जिससे न तो नया कर्म बन्धता है और न आत ध्यान ही रहता है इत्यादि बाद शांत सुनाई और सब लोग अपने २ स्थान गये। पन्यासजी महाराज के साधुओं को आश्वासन दे कर योगीराज तथा मुनिराज गोपीपुरा से बड़े चोटे के उपासरे पधार गये । ७६ पाप का घड़ा किस प्रकार फूटता है ?
सुरत का नगरसेठ बाबलालाभाई जो बड़ाचौटा में रहता था, उसके वहाँ कृपाचंद्रजी के शिष्य जीतसागर ने एक पेटी पैक कर भेजी थी कि हम विहार करेंगे, यह पेटी आपके यहाँ रखी जाती है; हम मंगावें वहाँ भेज देना । नगर सेठ तो थे बम्ब ई, उनके मुनीम ने सोचा कि कृपाचंद्रजी के साथ न तो नगरसेठ