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________________ ७७ - नगर प्रवेश का शानदार महोत्सव । श्रीमान् मोहनलालजी महाराज का सूरत एवं गोपीपुर के श्रावकों पर बड़ा भारी उपकार था, पन्यासजी श्री हर्षमुनिजी आपके बड़े शिष्य थे और तपागच्छ की क्रिया करते थे, आपका सूरत में पुनः पधारना बहुत वर्षों बाद हुआ था, सूरत की जनता आपकी प्र तीक्षा कर रही थी । जब समाचार मिला कि पन्यासजी महाराज जघड़िये पधार गये हैं तो सूरत वालों का सूरत और जघड़िये के बीच तांता सा लग गया, कुछ मोटरों से तो अन्य रेल से, इस प्रकार सैंकड़ों आदमी जघड़िया में जमा हो गये । साथ में योगीराज के दर्शन करने पर तो उन लोगों के लिए सोना और सुगन्ध वाला लाभ मिल गया, गोपीपुरा के लोग पन्यासजी कि वीनती करते थे तब बड़ाचोरा वाले योगीराजश्री की मह पूर्वक प्रार्थना कर रहे थे । दोनों महात्माओं ने कहा, हम सूरत तो चलते ही हैं, वही आने के बाद जहां की स्पर्शना होगी, वहीं ठहर जावेंगे, पर बड़े चोटा वालों ने कहा कि महाराज सूरत में बहुत से पुरा और उपा श्रय हैं, अतः आप हमारी विनती स्वीकार कर लें तो हम को तस ल्ली हो जाय। इस पर पन्याव जी महाराज ने कहा कि हम तो गोपीपुरा के उपाश्रय ठहरेंगे और योगीराज या मुनिजी आपके बड़ेचोटे के उपाश्रय ठहर जायंगे, बस फिर तो था ही क्या ? श्रा ने वाले श्रावकों के मनोरथ सिद्ध हो गये मुनि मंडल दो दिन जघड़िये ठहरे, और सूरत के श्रावक दूसरे दिन सूरत जाकर अग
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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