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________________ ४८७ मुनिश्री का अहमदाबाद में पैछाण न होय तो अमारे लेवु देवु शुछे मन्दिरों ना दर्शन करी चाल्यो जावु छे, समज्या न श्रावको ? - श्रावक-पोताना मनमां अफसोस करवा लाग्या, अने आखिर ते रवाना थई अहमदाबाद चाल्या गया । ७५-मुनिश्री का अहमदाबाद में पापण भंडारीजी के अहमदाबाद जाने से फलौदी वालों, सालावास वालों, तथा केरू सेतरावावालों एवं सबको मालूम हुई कि मुनिश्री फल पधारेंगे, उन्होंने सब मारवाड़ी समाज को सूचना दे दी, और अगवानी के लिये बाजा गाजा वगैरह की बड़े जोश के साथ तैयारियां करने लगे, कारण फलौदं वाले तो आपके पूर्ण भक्त थे ही, सालावास वाले आपके सँसार पक्ष के सुसराल वाले ही थे, केरु वाले वह भी आपके नजदीक संबंधी थे । दूसरे मारवाड़ी समाज को मारवाड़ी साधु का यह सर्व प्रथम ही अवसर मिला था, अतः सबके दिल में उत्साह उमड़ उठा था। - प्रातःकाल होते ही सब लोगों ने अपने मारवाड़ी रिवाज के अनुसार श्राभूषण, वस्त्रादि से सजधज हो कर सैकडों नर-नारियों मुनिश्री के सामने बहुत दर तक चले गये। जब मुनिश्री के दर्शन हुये तो जयनाद से गगन गुंज उठा, फिर बाजे गाजे के साथ नगर प्रवेश किया तो जो नरवाड़ा में मिले थे वह गुजराती श्रावक अगवानी में आ सम्मिलित हुए । जब मुनिश्री सदर बाजार बड़ी सड़क पर आये तो कई गुजराती साधु आपकी अगवानी के जुलूस का ठाठ देख पूछने लगे कि 'या एकला साधु किया गच्छ एवं क्या थी श्राव्या छे अने क्या उपासरा में उत्तरसे इत्यादि ?
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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