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आदर्श - ज्ञान - द्वितीय खण्ड
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पूजा प्रभावना. वरघोड़ा, पुस्तकजो एवँ स्वप्नापालनाजी का महोत्सव और प्रतिक्रमण वगैरह बहुत ही अच्छे ठाठ से हुये जिसको खरतर एवँ उनकी साध्वियाँ देखती ही रही ।
जोधपुर में अभी तक चैत्यपरिपाटी नहीं हुआ करती थी; मुनिश्री ने उपदेश दिया किंतु खरतरों को दुःख इस बात का था कि हमारे पर्युषणों में तो यह कार्य नहीं हुआ, तो तपा के पर्यषण में ही क्यों हो; अतः खरतरों ने बहुत विरोध किया, दूसरा पिछली रात्रि में वर्षा भी आने लगी । सब लोग निराश हो गये; मुनिश्री ने कहा कि तुम तुम्हारी सामग्री तैयार रखो । बस, बाजा गाजा, नक्कार-निशान वगैरह तैयार किये, मुनिश्री ने न जाने क्या अनुष्ठान किया कि बरसात बंद हो गई और चातुर्विवि श्री संघ के साथ चैत्य परिपाटी बड़े ही समारोह से हुई, उसमें खरतरों को भी शामिल होना पड़ा जो कि पहिले से खिलाफ थे मुनिश्री की चलाइ हुई चैत्य परिपाटी आज पर्यन्त चलती है और जनता को मालूम हो जाता है कि जैनों के पर्युषण सुख, शांति और आनन्द मँगल से समाप्त हो गये हैं ।
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आपश्री का चतुर्मास जोधपुर हुआ तब परम योगिराज मुनिश्री रत्नविजयजी महाराज का चतुर्मास सीपरी (शिवपुरी) था। यों तो आपश्री का कृपा पत्र बहुत से श्राये ही करते थे, पर श्रास्त्रिर पत्र आया जिसमें लिखा था कि मैं गुजरात जाता हूँ, यदि तुम गुजरात की ओर आओ तो मगड़िया तीर्थ पर अपना मिलाप हो सकता है । श्रपश्री ने उत्तर लिख दिया कि श्राप के कथनानुसार मैं विहार कर झगड़ियानी आ जाऊँगा, इसमें एक बात यह भी थी कि आपको श्रीशत्रुञ्जय की यात्रा भी करनी थी ।