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आदर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड
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कहा कि यदि हमारी मनाई होते हुए भी आप लोग सवारी निकाली तो क़ानून के अनुसार आप पर दावा कर दिया जायगा ।
इस पर खरतरों में खलबली मच गई, कारण एक तो तपागच्छ वाला कोई एक बच्चा भी नहीं आया, दूसरे सवारी की मनाई हो गई, इस हालत में खरतरों में दो पार्टियां हो गई; अधिक लोगों का जोर समाधानी करने का था, अतः लछमणदासजी भंसाली को इक्का दे कर शहर में भेजा, वह सीधा ही मुनिश्री के पास आया और कहा कि आप जैसे कहो वैसे ही हम समाधानी कर लेने को तैयार हैं । मुनिश्री ने कहा कि हम तो कँवला हैं, हमारे लिये तो क्या तपा और क्या खरतर सब बराबर हैं, किंतु समुदाय में फूट न पड़े इसलिए समाधान हो जाना अच्छा है । भंशालीजी बस्तीमलजी गोलिया को ले कर कचहरियों में गए कारण वकील मण्डल सब वहाँ था ।
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नथमलजी भुरंट के पास एक पुरानी बही थी जिसमें जिन जिन वर्षों में दो भादवा हुए उन उन समय में स्थायी चंदा का स्वामिवात्सल्य दूसरे भादवा में ही हुए थे, अतः वह बही भी बस्तीमजी साथ में ले गये थे । कचहरी में सब एकत्र हो भंडारीजी फैजचंदजी साहब के पास गए, सब हाल सुनने पर भण्डारीजी को खरतरों के अन्याय पर बहुत गुस्सा हुआ और कहने लगे कि हम लोग चाहे धर्मशाला में कम आते होंगे, किन्तु हमारी नसों में तपागच्छ का खून भरा हुआ है, खरतरों के इस प्रकार के अन्याय को हम कभी बर्दाश्त नहीं कर सकेंगे । स्थायी चंदा में इस स्वामीवात्सल्य की रकम कदापि खर्च खाते नहीं