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आदर्श ज्ञान-द्वितीय खण्ड
४४८ ___ भंडारी०-पास में बैठे हुए भंडारीजी धीरे से बोले कि हां लोगों को इस बात की शंका तो जरूर है; यदि इनका इतना आग्रह है तो सत्य बात कहने में आपको क्या नुकसान है ? ___मुनि:-नुकसान तो कुछ नहीं, किन्तु जिस बात के कहने से गग-द्वेष की वृद्धि होती हो, ऐसी सत्य बात कहने में भी क्या फायदा है ? यदि आप को निर्णय ही करना है तो आपके मकान में स्वामी फूलचन्दजी हैं, और मुझे विश्वास है कि उनके गले पर तलवार भी रखदी जावे तो वे झूठ कदापि नहीं बोलेंगे । मैं उनके पास रहा हुआ हूँ; आप उनके पास जाकर निर्णय कर लिरावें, किन्तु मेरे मुँह से न कहलावें ।
भँडारीजी व्याख्यान समाप्त होते ही वहाँ से उठ कर सीधे ही फूलचंदजी के मकान पर गये, फूलचंदजी गौचरी लेने को गये हुए थे, एक तपस्वी साधु जो ६५ उपवास किया हुआ वहाँ बैठा था। भँडारीजी ने उनसे कहा कि महाराज मैं एक बात पूछता हूँ और यदि आप दूंठ बोल गये तो आपके ६५ उपवास निरर्थक चले जावेंगे।
तपस्वी साधु था अपठित, और भद्रिक, अतः उसने सच्चे दिल से कह दिया कि भंडारी जी मैं साधु हो कर दूंठ कैसे बोलूगा, आप क्या पूछना चाहते हों ?
भँडारी०-आप पेशाब को काम में लेते हो ? तपस्वी०-हाँ । भँडारो०-किस काम में लेते हो ?
तपावी-रात्रि में टट्टी का काम पड़ता है तो शौच करते हैं, शौच करने पर मस्तक भी धोते हैं; झोली चिकनी हो तो उसको