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आदर्श ज्ञान - द्वितीय खण्ड
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लो श्रावियो छे के विना अञ्जनसिलाका नी मूर्त्तियाँ प्रतिष्ठा माटे श्रापो छो ? क्याँ छे फूलचन्द सेठ ?
मुनीम -- फूलचंदजी साब तो गुजरी गया छे । सूरिजी — यहाँ नों काम कौन देखे छं ।
मुनीम - फुलचन्दजी ना बेटा नेमीचन्दजी | सूरिजी - यहाँ श्राव्या छे ?
मुनीम -- नथी श्राव्या |
सूरिजी - तमे कहो दीजो के हवे थी या बिना अञ्जन सिलाका नी मूर्तियाँ प्रतिष्ठा माटे कोइने नहीं पे |
मुनीम - कहि देसुं साहिब ।
सूरिजी - सूरिजी ने मँदिरजी के दर्शन एवं चैत्यबन्धन किया बाद मकान पर पधार गये ।
दोनों मुनिराज तथा सब लोगों ने सरिजी को बन्दन किया,
सूरिजी ने मुनिश्री के सामने देख कर कहा:
सूरिजी -- घेवरमुनि तमारो नाम छे ।
मुनि० - जी हुजूर ।
सूरिजी - केटला दिवस थी यहाँ आव्यो छे ।
मुनि - दस दिवस थया के आपनी राय जोई ये छे । सूरिजी - ठीक है, तमारो पत्र सादड़ी मां मल्यो हतो अने तेनी अन्दर केटलाक प्रश्न पण हता पण कागल में केटलो उत्तर लिखाय दीवे तमांरे जे कंइ पूछवानों होय तो खुशी थीं पुछ लीजो | मुनि० - जी साहिब ! अज्ञा थाय के हमणा तो श्रमें जाइये छे । आप पण गौचरी करशो |
सूरिजी - ठीक छे आवजो दोपहर मां ।