________________
आदर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड
४२२ प्रतिक्रमण भी नहीं आया; मुनिश्री ने दो तीन बार कह दिया कि यदि तुम इस प्रकार प्रपंच और प्रमाद का बर्ताव रखोगे तो मेरे पास तुम्हारा निर्वाह नहीं होगा । फिर भी आपकी प्रकृति आण में नहीं रह सकती थी। __मुनिश्री ने ओसियां पधार कर बोर्डिंग का निरीक्षण किया, जो २ त्रुटियें थी उनके लिये मुनीम को सूचना दी। द्रव्य सहायता के लिये फलोदी से मदद करवाई थी और जहाँ मौक़ा आता था वहाँ उपदेश किया ही करते थे। ___आचार्य श्री स्नप्रभसूरीश्वरजी महाराज ने इसी ओसियाँ में पधार कर श्रोसवंश की स्थापना की। प्राचार्य कक्कसरि ने देवी के उपद्रव को शांत किया । इन महापुरुषों के नाम की स्मृति के लिए यहाँ कोई न कोई संस्था होनी चाहिए, अतः इस पर विचार कर आपश्री के कर कमलों से श्री रत्नप्रभाकर ज्ञानपुष्प-माला फलोदी की एक सहायक ( Branch ) शाखा यहाँ भी स्थापित कर दी और स्तवन संग्रह द्वितीय भाग की १००० प्रतिएं छपवा दी गई। दूसरे श्राचार्य कक्कसरि की स्मृति के लिए एक कक्कक्रान्ति जैन लाईब्रेरी की स्थापना करवाई कारण जहां बोर्डिंग हो वहाँ छात्र, व अध्यापक या तीर्थ यात्रार्थ आये हुए सज्जनों के लिए एक लाइब्रेरी की मुख्य जरूरत थी। उपस्थित सजनों में से कई ने अपनी २ ओर से पुस्तक भेंट देने का तथा कई समाचारपत्र मंगवा देने का अभि वचन भी दिया । बहुत सी पुस्तकें मुनिश्री ने अपनी ओर से भेंट कर दी। ____ इधर आचार्य विजय नेमिसूरीश्वरजी पालड़ी से जैसलमेर जाने के लिए संघ लेकर क्रमशः ओसियां पधारने वाले थे और