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________________ ४१३ मुनिश्री और पूज्यजी म. लेवेंगे। पूज्य महाराज इननी तकलीफ तो आपको उठानी ही पड़ेंगी, और आपके थोड़े से कष्ट से हम लोगों का कल्याण हो जायगा, क्योंकि साधु हमेशा परोपकारी होते हैं। पज्यजी-यदि हम दोनों एक निर्णय पर आ सकते तो अलग ही क्यों होते, तथा गयवरचंदजी जैसा साधु श्रापके हाथ ही क्यों लगता। फूल०- स्त्रैर, पहिले श्राप एक नहीं हो सके तो अब हो जाइये, कारण सूत्र तो आप दोनों के एक ही हैं। पूज्यजी-आपको कह दिया न कि हम इस प्रकार का वादविवाद करना नहीं चाहते हैं । रेखचन्दजी-आपको नहीं पर हमको निर्णय करना है। रेखचन्दजी लौकड़ ने एक श्रावक को कहा जाओ ज्ञानसुँदरजी महाराज को बुला लाओ। पूज्यजी-क्या श्राप परस्पर बखेड़ा कराना चाहते हैं, यदि गयवरचन्दजी यहाँ आवेगा, तो मैं ऊपर कमरे में जाकर मौन कर बैठ जाऊंगा । इन वचनों को सुन कर रेखचन्दजी ने स्थानकवासी श्रावकों को कहा कि श्राप कहते थे कि हमारे पूज्यजी भाते हैं, गयवरचन्दजी भाग जावेगा, यह बात आप अपने दिल से ही कहते थे या पूज्य महाराज के कहने से। भला शास्त्रार्थ करने के लिये तो हम लोगों ने मुनिश्री को विहार करते रोका । अब आप पूज्यजी महाराज को खानगी समझा कर कल तैयार कर देना कि गुरु शिष्य शास्त्रार्थ कर अपने में जो मत-भेद है उसको मिटा कर दोनों सम्प्रदायों को एक करदें और गुरु-शिष्य एक बन जावें; इंदना कह कर श्रावकगण उठ कर चल धरे ।
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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