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________________ ३८९ बीसलपुर वालों को सद्बोध के किले में मैंने बहुत पुरानी प्रतिमाएं देखी हैं । नासिक के पास गुफाओं में भी बहुत पुरानी मूर्तियां हैं; फिर दूँढ़िया लोग मन्दिर मूर्ति को क्यों नहीं मानते हैं ? ___ मुनि०-बस,मगड़ा ही इसी बात का है । यदि आपको सूत्रों का निर्णय करना हो तो यहाँ छोटे प्यारचन्दजी साधु का चतु. मांसा है, लो मैं आपको यह 'गयवर विलास' नामक पुस्तक देता हूँ, इसमें ३२ सूत्रों के पाठ दिए हुए हैं जिनसे मूर्तिपूजा सिद्ध कर बतलाई है; आप स्वामी प्यारचन्दजी को पूछ कर निर्णय कर सकते हो। __ गणेश०-पुस्तक हाथ में लेकर देखी तो मालूम हुआ कि पुस्तक मुनिश्री की बनाई हुई है। ___ मुनि:-आप विश्वास रखो, मैं भ्रष्ट नहीं हुआ, अपितु भ्रष्ट होने से बच गया हूँ । भला, आप समझदार हो विचार कर सकते हो कि यदि मैं चारित्र से भ्रष्ट हो गया होता तो हजारों समझदार और इज्जत वाले इस प्रकार सेवा भक्ति कर मेरा व्याख्यान सुन सकते ? यहाँ मारवाड़ में संवेगी साधु बहुत कम आते हैं, इसलिए मूर्ति पूजा का प्रचार कम है; और ढूंढियों के विशेष आने जाने से प्रायः सब लोग ढूंढिया हो गये हैं,परन्तु गुजरात वगैरह में जाकर देखो तो प्रायः सब लोग मन्दिर मार्गी ही हैं, और भी सुनिये:. ढूंढ़िये तीन पात्रे या इन से भी अधिक रखते हैं, जब कि मैं दो पात्रे ही रखता हूँ। हूँ दिये तीन चहरें रखते हैं, जब कि मैं दो ही रखता हूँ। जब तक मैं शत्रुञ्जय की यात्रा न करूं वहां तक छ विगई से केवल १ ही विगई काम में लेना रख शेष का त्यागकर दिया है।
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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