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________________ ३८३ पूज्यजी का फलौनी में नार साध्वी जो वहाँ चतुर्मास करने को आये हुए थे विहार कर अन्यत्र जाकर चतुर्मास किया। केवल तेजसीजी की समुदाय के छोटे प्यारचंदजी का चतुर्मास फलौदी में ही रहा, कारण वे प्रदेशी साधु थे, दूरसे आये हुए अब चौमासे के नजदोक दिनों में कहाँ जावें और आस पास में ऐसा कोई क्षेत्र भी नहीं था। ५६ फलौदीमेचतुर्मासऔर धर्मसुन्दरकीदीक्षा असाढ़ का महिना थ', चतुर्मास लगने की तैयारी थी, एक ढूंढ़िया साधु धूलचंदजी पू० रुगनाथजी की समुदाय के रत्रचंदजी का शिष्य था, वेष छोड़ कर फलौदी आया था और वह रूपसुन्दरजी से मिला। रूपसुन्दरजो ने मुनिश्री को कहा तो मुनिश्री ने कहा कि जिसने दीक्षा लेकर छोड़ दी और कहा पानी पी लिया, ऐसे को दीक्षा देकर क्या लाभ उठाओगे ? मेरी तो इच्छा ऐसे पतितों को दीक्षा देने की नहीं है रूपसुंदरजी ने श्रावकों को उत्तेजित किया कि महाराज साहब ने गच्छ का उद्धार करने का निश्चय किया है, और ऐसे नवयुवक दीक्षा लेने वाले को दीक्षा देने से इनकार करते हैं; फिर गच्छ कैसे चलेगा ? श्रावकों ने मुनिश्री को विनय की, उत्तर में आपने कहा कि रच्छ ऐसे पतितों से न तो चला और न भविष्य में चलने का; मैंने ठीक परीक्षा करली है, वह दीक्षा के योग्य नहीं है। फिर भी रूपसुन्दरजी की स्वछन्दता को आपश्री रोक नहीं सके, पाँच दिन बिंदोरा खिला कर असाढशुद्ध १३ को उसको दीक्षा देकर, उसका "धर्मसुन्दर' नाम रख रूपसुन्दरजी का शिष्य बना दिया। दूसरे ही दिन था चातुर्मासिक प्रतिक्रमण-एक तो था उस दिन उप
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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