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खरतरगच्छ वालों की कोशीश
पढ़ने के लिए हमारी बहुत इच्छा एवं अभिलाषा सदैव रहाकरती है किंतु कोई पढ़ानेवाला ही नहीं है यद्यपि हमारा सिंघाडा में साबु हैं । किंतु वे इतने पढे लिखे नहीं हैं । अतः हम कहाँ जाकर पढ़े यदि ज्ञानरूची वाली साबियों को पढ़ाने वाला हो तो वे पढ़कर अच्छा होसीयार हो सकती हैं व्याकरण के अभ्यास के लिए ब्राह्मण के पास पढने की गुरुणीजी साहब की मनाई है फिर भी हम लोग अलग दूसरे ग्रामों में रहें तो पण्डितों से थोड़ा बहुत अभ्यास करती करवाती हैं पर जैनशास्त्रों के लिए तो अभी हम अनभिज्ञ हो हैं । श्रतएव श्राप से प्रार्थना है कि आप हमारे सिंघाड़ा में पधारने की अवश्य कृपा करावें | और खरतरगच्छ नया नहीं पर पुराणा गच्छ है बड़ा छोटा दादा साब बड़े ही प्रभावशाली हुए हैं ।
मुनि: आप के सिंघाडा में कौन और कैसे २ साधु हैं और उनकी क्या इच्छा है, जब तक मैं उनसे न मिल लूं तब तक क्या कहा जा सकता है फिर भी मैंने अभी तक निश्चय नहीं किया है कि किस के पास रहना इस पर साध्विजी को कुछ आशा हुई कि महाराज ने हमारी प्रार्थना पर कुछ ध्यान तो दिया है
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इधर साध्वियों ने अपने गच्छ के श्रावकों को कहा कि हमारे और मुनिश्री के इस प्रकार वार्तालाप हुआ है, आप लोग कोशिश करें तो यह कार्य बन सकेगा और यह अमूल्य रत्न सहज हो हाथ आ गया है इसको बेपरवाही से नहीं खो देना चाहिये, इसलिये सब से पहली बात तो यह है कि हरिसागरजी में तो इतनी योग्यता नहीं है पर मुनिश्री आनन्दसागरजी जो बीका नेर में है उनको यहां बुलावें तो यह मामला बन सकता है । इस पर सब लोगों ने सलाह कर के पाबुदानजी गालेछा को