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कौसाना का मंदिर के लिये चर्चा
का
यहां आवश्यकता थी ही । बस, उनको भी रख लिया और बोडिंग कार्य सुचारु रूप में चलने लग गया । श्रधिष्ठायक की ऐसी कृपा हुई कि उन दिनों में यात्री लोगों का भी आगमन गहरी तादाद में हुआ, अतः बोर्डिंग को आर्थिक सहायता भी अच्छी मिली ।
पीपाड़ के पास कौसना नामक एक ग्राम है, वहां २० घर ओसवालों के होने पर भी एक भव्य, मनोहर और शिल्पकला का आदर्श नमूना रूप जिन प्रतिमा की बड़ी आशातना होती थी और मन्दिर के अभाव में मूर्ति एक दुकान में रखी हुई थी । इसका कारण यह था कि वहाँ के सब लोग स्थानकवासी बन गये थे । दैववशात् जोधपुर के भंडारी जी चन्दनचन्दजी वहाँ श्रमीन के तौर पर प्रधारे। आपको दृष्टि ओर पहुँची और आपने ग्राम के छोटा बड़ा मन्दिर बनाने को कहा
उस मूर्ति की महाजनों को
आशातना की एकत्र कर एक
।
पर वहां के लोगों ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया । फिर भी भंडारीजी की सच्ची लगन ने उन्हें विवश किया कि वे ग्राम वालों की अनुमति लेकर मन्दिर का कार्य प्रारम्भ कर दिया । बाहर से चन्दा कर के द्रव्य ला कर उसको आगे बढ़ाया । इस कार्य में भंडारीजी साहब को अनेक आफतें उठानी पड़ीं । पर भंडारी जी हतोत्साही न हुए । उन्होंने थोड़े ही दिनों में एक भव्य मन्दिर तैयार करवा दिया और उसकी प्रतिष्ठा भी करवा ली। भंडारी जी एक दिन श्रोसियां पधारे; जब उन्होंने योगीराज श्री को निवेदन किया कि आप एक दिन कौसने पधार कर मन्दिर जो का दर्शन अवश्य करें, कारण ऐसी सुन्दर एवं चमत्कारी मूर्ति बहुत थोड़े स्थानों में पाई जाती हैं। योगीराज ने कहा भंडारी जी मैं यहां से विहार