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भादर्श-ज्ञान द्वितीय खण्ड
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आपने स्वीकार कर गुरु महाराज को नमस्कार किया तथा कहा कि मैं आपके आदेश से भले उपकेशगच्छ का कहलाऊं, पर मेरे गुरु तो आप ही हैं।
गुरु०-यह आपका सौजन्य है।
योगी-मुनिश्री अब सब से पहिले आपको प्रतिक्रमण, देववन्दन, चैत्यवन्दन, पूंजन, प्रतिलेखन, संस्तारापौरषो बगैरहः साधु की आवश्यक क्रिया कण्ठस्थ करके उसी प्रकार क्रिया करनी चाहिये।
मुनि-जी हाँ!
कुछ पाठ तो आपने तीवरी में कर लिया था, शेष गुरु महाराज के पास में रह कर कण्ठस्थ कर लिया। आप १००-१०० श्लोक प्रति दिन कण्ठस्थ करने वाले बुद्धिमान थे, आपके लिये इतना सा विधि-विधान कण्ठस्थ कर लेना कौनसी बड़ी बात थी। आप चम्म दिनों में सब क्रिया विधान कण्ठस्थ कर गुरु महाराज के सामने क्रिया करने लग गये। ४७ प्राचीन शिलालेख की प्राप्ति ___ एक दिन स्कूल की छुट्टी थी। मास्टर विद्यार्थी, मुनीम और हमारे युगल मुनिवर प्राचीन मन्दिरों को, जो भग्न एवं खण्डहर अवस्था में थे, देखने को पधारे । कई प्राचीन स्थानकों का निरीक्षण करते करते एक प्राचीन जैन मन्दिर के खण्डहर दीख पड़े। उन खण्डहरों में उन्होंने मस्तकरहित चन्द्र के चिन्ह वाली एक जिन प्रतिमा देखी, जिसका अंग प्रत्यंग खण्डित था । उसके अधो.