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________________ २९३ अखबारों में आन्दोलन कर कई ग्रामों में भेज दीं । प्रतिएँ स्थानकवासी समाज के हाथ भी आईं और उन्होंने एक अजब ही हुल्लड़ मचा दिया । साथ ही उन्होंने अपने यहां से निकलने वाले समाचारपत्रों में लेख निकलवाना भी प्रारम्भ कर दिया, जिनके शीर्षक इस प्रकार होते थे, – “भ्रष्टाचारी गयवरचंद से बचो”, “धर्मधूर्त से सावधान”, “गयवरचंद के पास कोई मत जाओ" " इसको श्रहार पानी तथा मकान मत दो" "यदि इसकी सँगति करोगे या शिष्य का मोह कर समुदाय में रक्खा गया तो जैसे अग्नि को रूई में छिपाने से जो लाभ (1) होता है उतना ही इस भ्रष्ट श्रद्धा वाला गयवरचन्द को समुदाय में रखने का होगा क्या समाज भूल गई है कि दण्डी आत्माराम की श्रद्धाभ्रष्ट होने के बाद समुदाय में रखने से वह २२ साधुओं को पतित बना कर अपने साथ ले गया था यदि गयवरचन्द को भी समुदाय में रख लिया तो संभव है कभी यह ४० साधुत्रो को ले निकलेगा श्रतः समाज जल्दी से सावधान हो जाय और भ्रष्टश्रद्धा वाला गयवरचन्द के साथ सब सम्बन्ध तोड़ दें इसमें ही स्थानकवासी समाज का भला है । जब इस प्रकार अख़बार सियाँ योगिराज के पास पहुँचे तो आपने अपने भद्रिकपना से हुई भूल पर बहुत पश्चात्ताप किया और aat मुनिश्री को लिख दिया कि जो बारह वर्ष मुँहपत्ती बांध सत्योपदेश करने की योजना तैयार की गई थी, वह मेरी ग़लती से निष्फल हो गई है । अब चातुर्मास समाप्त होने पर तुमको वेष परिवर्तन कर किसी भी संवेगीं साधु के पास दीक्षा लेनी पड़ेगी । श्रतः दीक्षा किसके पास लेना, इसका तुम स्वयं निश्चय कर लेना, ୨୧
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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