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________________ आदर्श - ज्ञान २५२ दाय के साथ रह सकोगे; वरना पूज्यजी महाराज का हुक्म आपको समुदाय से अलग कर देने का है । वे १२ कलमें निम्न लिखित थीं : (१) मूर्ति पूजा की पुष्टि हो ऐसी प्ररूपना करनी नहीं । (२) छपे हुए तथा टीका के सूत्र बांचना नहीं । (३) धोवरण में जीव की शंका रखनो नहीं । (४) बासी रोटी खाने से इन्कार करना नहीं । (५) विद्वल वस्तु लेने में या खाने में ना कहना नहीं । (६) कोई भी मूर्ति पूजक व्यक्ति के साथ बात करनी नहीं । (७) किसी व्यक्ति को पत्र समाचार देना नहीं । (८) कोई भी मूर्ति पूजा के विषय में प्रश्न करें, तो उत्तर अपनी समुदाय की परम्परा की मान्यता के खिलाफ देना नहीं । (९) मात्रो (पेशाब) परठ कर हाथ धोने का आग्रह करना नहीं । (१०) चूना डालकर भी रात्रि में पानी रखना नहीं । शौच का काम पड़े तो समुदाय की परम्परा मुजब बर्ताव करना । (११) सूत्रों के टब्बा में कहीं पर मूर्ति का उल्लेख हो, तो उस पर श्रद्धा रखनी नहीं; तथा अन्य साधु ग्रों, आरजियों, या श्रावकों को वह अर्थ बतला कर मूर्ति की श्रद्धा करवानी नहीं । (१२) 'सावद्य पाप करी' अर्थात् जिस काम में थोड़ी भी हिंसा हो, उसमें धर्म व पुण्य मानने की श्रद्धा रखनी नहीं । इन १२ कलमों को पढ़कर हमारे चरित्रनायकजी ने कहा कि हम व्यापारियों को देखते हैं कि जहां साहूकारी होती है वहां वे चाणी मात्र से ही हजारों-लाखों रुपये की लेन-देन किया करते हैं,
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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