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आदर्श - ज्ञान
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दाय के साथ रह सकोगे; वरना पूज्यजी महाराज का हुक्म आपको समुदाय से अलग कर देने का है । वे १२ कलमें निम्न लिखित थीं :
(१) मूर्ति पूजा की पुष्टि हो ऐसी प्ररूपना करनी नहीं । (२) छपे हुए तथा टीका के सूत्र बांचना नहीं । (३) धोवरण में जीव की शंका रखनो नहीं । (४) बासी रोटी खाने से इन्कार करना नहीं । (५) विद्वल वस्तु लेने में या खाने में ना कहना नहीं । (६) कोई भी मूर्ति पूजक व्यक्ति के साथ बात करनी नहीं । (७) किसी व्यक्ति को पत्र समाचार देना नहीं ।
(८) कोई भी मूर्ति पूजा के विषय में प्रश्न करें, तो उत्तर अपनी समुदाय की परम्परा की मान्यता के खिलाफ देना नहीं । (९) मात्रो (पेशाब) परठ कर हाथ धोने का आग्रह करना
नहीं ।
(१०) चूना डालकर भी रात्रि में पानी रखना नहीं । शौच का काम पड़े तो समुदाय की परम्परा मुजब बर्ताव करना ।
(११) सूत्रों के टब्बा में कहीं पर मूर्ति का उल्लेख हो, तो उस पर श्रद्धा रखनी नहीं; तथा अन्य साधु ग्रों, आरजियों, या श्रावकों को वह अर्थ बतला कर मूर्ति की श्रद्धा करवानी नहीं ।
(१२) 'सावद्य पाप करी' अर्थात् जिस काम में थोड़ी भी हिंसा हो, उसमें धर्म व पुण्य मानने की श्रद्धा रखनी नहीं ।
इन १२ कलमों को पढ़कर हमारे चरित्रनायकजी ने कहा कि हम व्यापारियों को देखते हैं कि जहां साहूकारी होती है वहां वे चाणी मात्र से ही हजारों-लाखों रुपये की लेन-देन किया करते हैं,