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आदर्श - ज्ञान
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मेघ -- मेरी तो राय है कि वेष-परिवर्तन नहीं करना चाहिये । मुनि - - मेघराजजी साहब, सब जीवों की रुचि व प्रकृति एक समान नहीं होती है । कुछ व्यक्ति भले ही मौन करने में संतोष मान लें, किन्तु छती शक्ति गोप कर रखना भी तो एक महान् पाप है । यही कारण है कि केवल ज्ञान हो जाने पर भी तीर्थङ्करों ने पर जीवों के कल्याणार्थ धर्म देशना दी है, उसमें भी मिध्यात्व एवं दुराचार का जोरों से खण्डन किया है । फिर जनता उनको अच्छा समझे या बुरा, इसकी परवाह उन्होंने नहीं की थी। दूर क्यों जाते हो, स्वामी बुटेरायजी एवं श्रात्मारामजी यदि मौन कर वेष- परिवर्तन नहीं करते तो क्या इतना उपकार कर सकते ? लेकिन उन्होंने डंके की चोट सदुपदेश देकर पञ्जाब जैसे प्रदेश में भी जैन-धर्म का जोरों से प्रचार कर दिया । अतः मेरे खयाल से तो वेष परिवर्तन करना हानिकारक नहीं, अपितु बड़े भारी लाभ का ही कारण होगा ।
मेघ - कर्मचन्दजी तथा शोभालालजी महाराज की क्या राह है ?
मुनि - वे वेष छोड़ने को तो तैयार हैं; किन्तु साधु बल बढ़ाने की राह देख रहे हैं, मेरे खयाल से वे भी लोकापवाद से ते हैं ।
मेघ - कम से कम उनकी राहा से तो आपको सहमत होना चाहिए ।
मुनि - मैं लाचार हूँ कि इस विषय में मैं उनके साथ नहीं रह सकता ।
* स्वामी कर्मचन्दजी और शोभालालजी काफी अर्से तक तो उसी वेश