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३५. मार्ग में मेघराजजी से मिलाप -
तेरपन्थियों के माफ़ी मांग लेने पर दूसरे दिन मोड़ीरामजी महाराज ने अपने साधुओं के साथ विहार किया । आप क्रमशः विहार करते हुए ब्यावर से ६ कोस पर एक जीवाजा ग्राम में श्राये । यह खबर ब्यावर में मेघराजजी एवं कनकमलजी बोहरा को मिली। वे इक्का लेकर संध्या के समय वहां आये । प्रतिक्रमण के पश्चात् पहले तो मोड़ीरामजी के साथ उनकी वातचीत हुई। बाद में हमारे चरित्रनायकजी के पास में आकर वन्दन कर कुशलता पूछी और कहने लगे :
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मेघराज - आपने तो अपनी श्रद्धा के लिए खूब प्रसिद्धता प्राप्त कर ली है ।
मुनिश्री — क्या करूँ, सच्ची बातें छिपाई नहीं जा सकती है। आज से नहीं, वरन् शुरू से ही मेरी आदत सत्य बात को निडर कह देने की है ।
मेघराज - महाराज आत्मार्थी मुमुक्षु सूत्रों का यह एक विशेष लक्षण हुआ करता है । अब आपका क्या इरादा है ?
मुनिश्री - अब तो इस वेश का त्याग करना ही अच्छा समझता हूँ ।
मेघराज — नहीं महाराज ! वेष- परिवर्तन करना अच्छा नहीं
है ।
मुनिश्री - क्या, जान-बूझ कर कुलिंग रखना अच्छा है ? मेघ - केवल लिंग में ही मोक्ष नहीं है ।
मुनि - पर कुलिंग के रखने से कभी न कभी तो उत्सूत्र बोलने का पान लग ही जाता है न ?