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________________ आदर्श ज्ञान २३६ भी वहां पहुँच गये । इधर मोड़ीरामजी भी खूब लम्बा २ बिहार कर उसी दिन गंगापुर जा पहुँचे । कर्मचंदजी, शोभालालजी और गयवरचंदजी इन तीनों की श्रद्धा तो मूर्ति पूजा की थी ही अतः इनका मिलाप एक त्रिवेणी का समागम हो गया। साथ में इन्होंने मोड़ीरामजी की श्रद्धा भी सूत्रों के मूल पाठ तथा टब्बार्थ बतला कर मूर्ति-पूजा की ओर झुका दी। साथ के कई साधु भी समझ गये कि जैन सूत्रों में मूर्ति पूजा का उल्लेख अवश्य है। ___ सबसे पहिले गयवरचंदजी गंगापुर में आकर कर्मचंदजी से मिले और अपना सब हाल कर्मचंदजी से कह सुनाया । उन्होंने उत्तर दिया कि तुमने बहुत जल्दी की,काम धीरे २ होता है, पहिले साधु बल को बढ़ाओ, और दूसरे कम से कम तुम्हारे गुरू मोड़ीरामजी को तो पक्का करना चाहिए। __ मुनिश्री-मोड़ीरामजी की श्रद्धा तो मैंने मूर्ति-पूजा की ओर मुका दी है, पर वे वेष परिवर्तन करना नहीं चाहते हैं । दूसरे रतनलालजी, तखतमलजी, किशनचंदजी वगैरह चारपांच साधुओं को मैंने पक्का कर लिया है, सूत्रों के पाठ देख दिये, अतः उनको श्रद्धा भी मूर्ति मानने की हो गई है, पर पूज्यजी इन साधुओं का समागम नहीं होने देते हैं। फिर भी हम दूसरों के भरोसे पर कहां तक रह सकते हैं, अतः आप तैयार हो जाईये । ___कर्मचन्दजी-मैं तो तैयार ही हूँ, किन्तु ५-७ साधु और भी तैयार हो जावें, तो जनता पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा, इसलिये तुम अभी धैर्य रखो। इधर जब शोभालालजो और मोड़ीरामनी गंगापुर पहुंचे तो
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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