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नौ प्रश्नों के उत्तरमें मूर्ति पूजा का फल ___३–तीसरे प्रश्न का उत्तर-सूरियाम आदि देवताओं के सम्बन्ध में देवताओं का धर्म-सम्बन्धी पुस्तक के अनुसार एक बार ही जिन प्रतिमा पूजने का अधिकार सूत्र में आता है, बार बार का नहीं, परन्तु 'पोपच्छा' पाठ के अनुसार पहले और पीछे भी जिनप्रतिमा की पूजा की हो, तो संभव हो सकता है। __४ चौथे प्रश्न का उत्तर-देवता जिन प्रतिमा पूजते हैं, यह उनका मंगलिक ब्यवहार है, यहां समकित- मिथ्यात्व का खुलासा नहीं है। दोनों प्रकार के देवता उत्पन्न होते हैं, और ये लौकिक व्यवहार या जीत ब्यवहार की क्रिया करते हैं । अलबत्ता तीर्थङ्कर भगवान् तीनों लोक में पूजनीय होने से नमोत्थुणं वगैरह कि क्रिया जैन की संभवे है । सम्यग्दष्टि और मिथ्यादृष्टि के परिणाम पृथक् पृथक होते हैं, जिन प्रतिमा को नमोत्थुणं देना, यह क्रिया सम्यग्दष्टि की ही होना संभव है।
५ पांचवें प्रश्न का उत्तर-पूजा के फल के लिये पांच बोलों
का अर्थ:
१ हियाए-एक मित्र की परे हितकारिता । २ सुहाए-पांचेन्द्रियों के वांच्छित सुखों की प्राप्ति । ३ रकमाए-मल रहित वस्त्र की तरह पवित्रता । ४ निस्सेसाए-उपद्रव्य रहित निर्विघ्नता पूर्वक दुःखों से
छूटना और सुखों के सन्मुख होना । ५ अणुगमिताए-एक से लगाकर जावज्जीव पर्यन्त मचकु
फल साथ में रहें। अर्थात् पूजा करने में अपनी शुभयोगों की प्रवृत्ति होने से, शुभ बन्ध होता है।
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